24 March 2008

'बचाओ-घड़ियाल'


हम हरी वादियों से कंक्रीट के जंगल में समाते जा रहे हैं। तरक्की की ये मांग हमारी भी जरूरत बन गई है। हमारी इस रफ़्तार से धरती के कितने ही प्राणियों के आगे अस्तित्व का संकट आ गया है। बाघ- हाथी से लेकर घड़ियाल-मछली तक दुनिया से विदाई की कगार पर हैं। ये नहीं बोल सकते 'बचाओ', हम बोल सकते हैं।
घड़ियाल
धरती पर बचे-खुचे घड़ियालों का सबसे बड़ा बसेरा है चंबल नदी। नवंबर 2007 के आखिरी हफ़्ते में घड़ियालों के शव मिलने शुरू हुए, जिन्हें पहले वन विभाग ने चोरी-छिपे दफ़्न कर दिया था, यानी इनकी मौत का सिलसिला कुछ महीने पहले ही शुरू हो चुका था। हम कारणों की पड़ताल करते रहे, घड़ियाल एक-एक कर मरते रहे। धरती पर इस दुर्लभ प्राणी की संख्या इतनी कम है कि एक-एक घड़ियाल कीमती है। घड़ियाल का होना साफ पानी का सूचक है, घड़ियाल साफ पानी में ही पाया जाता है। लेकिन चंबल का पानी यमुना से मिलकर घड़ियालों के लिए ज़हर बन रहा है, अब तक का निष्कर्ष यही है। रिपोर्ट्स कहती हैं कि पिछले दस साल में 58 फीसदी घड़ियाल घट गए हैं। ये बड़ी चिंता का विषय है। घड़ियाल को उस रेड लिस्ट में शुमार किया गया है जो खतरे में आ चुकी स्पीशीज़ की जानकारी देता है। अब तक सौ से ज्यादा घड़ियालों की मौत की पुष्टि हो चुकी है और प्रजनन योग्य घड़ियालों की संख्या (भारत, नेपाल में मिलाकर) महज 182 आंकी गई है। तो क्या हम धरती से स्वच्छ पानी में विचरण करने वाले इस दुर्लभ जीव की विदाई के लिए तैयार हैं।

1 comment:

Ek ziddi dhun said...

आदमी को अपने ख़ास किस्म के लालच के अलावा कुछ सूझ कहाँ रहा है.