यहां गूंजते हैं स्त्रियों की मुक्ति के स्वर, बे-परदा, बे-शरम,जो बनाती है अपनी राह, कंकड़-पत्थर जोड़ जोड़,जो टूटती है तो फिर खुद को समेटती है, जो दिन में भी सपने देखती हैं और रातों को भी बेधड़क सड़कों पर निकल घूमना चाहती हैं, अपना अधिकार मांगती हैं। जो पुकारती है, सब लड़कियों को, कि दोस्तों जियो अपनी तरह, जियो ज़िंदगी की तरह
29 May 2008
सबसे बड़ा बोर्ड,पिछड़ा बोर्ड, यूपी बोर्ड
सीबीएसई बोर्ड के दसवीं के नतीजे आए, 88 फीसदी छात्र पास हुए। आईसीएसई बोर्ड में दसवीं का रिजल्ट 98.6 फीसदी रहा जबकि 12वीं का रिजल्ट 97.5 फीसदी रहा। यूपी बोर्ड का हाल देखिए एक तिहाई बच्चे फेल हो गए। सिर्फ 65 फीसदी बच्चे पास हए। इनमें लड़के तो क़रीब-क़रीब आधे फेल हो गए। छात्रों की सफलता का आंकड़ा मात्र 54 फीसदी रहा। बोर्ड की सचिव ने कहा नकल पर अंकुश लगाया इसलिए मात्र 65फीसदी बच्चे पास हुए। लेकिन दूसरे बोर्ड की तुलना में यूपी बोर्ड पिछड़ा हुआ है इसमें किसी को कोई शक़ नहीं हो सकता। पाठ्यक्रम के मामले में भी, पढ़ने-पढ़ाने के तरीके के मामले में भी, सुविधाओं के मामले में भी। यूपी बोर्ड से सबसे यादा विद्यार्थी निकलते हैं, सबसे बड़ा बोर्ड है यूपी बोर्ड, नकल के मामले में भी सबसे अव्वल। नकल के लिए परीक्षा केंद्र बदले जाते हैं, पूरा-पूरा परीक्षा केंद्र नकल करते हुए पकड़ा जाता है, नकल माफिया यहां परीक्षा कराने के लिए लाखों का खेल करते हैं, शिक्षक-प्रधानाचार्य तक नकल कराने के लिए पकड़े जाते हैं। नकल रोकनेवालों की जान पर आ बनती है। ये ख़बरें अनसुनी नहीं। तो फिर इस बोर्ड से पास होकर निकलनेवाले विद्यार्थियों की शिक्षा का स्तर क्या-कैसा होगा? इसमें विद्यार्थियों को ज़िम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता। मां-बाप अपने बच्चों को इंग्लिश मीडियम स्कूलों में दाखिला भी इसीलिए दिलाना चाहते हैं , क्योंकि वहां से निकलनेवाले बच्चों का भविष्य ज्यादा बेहतर नज़र आता है। यूपी बोर्ड की दिक्कत भी ठीक वही है जो आकार और आबादी में बड़े राज्य उत्तर प्रदेश की है। विकास के नक्शे में उत्तर प्रदेश सबसे पिछड़ने राज्यों में से एक है और यूपी बोर्ड के बच्चे घटिया शैक्षिक स्तर की वजह से मात खाते हैं और दूसरे माध्यम से पढ़े बच्चों की तुलना में उन्हें ज्यादा मेहनत करनी पड़ती है, हर क्षेत्र में। आत्मविश्वास के मामले में भी वो पीछे ही रह जाते हैं।
12 May 2008
बातें
बातें कितनी अच्छी होती हैं। समंदर की बातें करिये और आप समंदर किनारे पहुंच जाते हैं। बर्फ़ की बातें करिये और दिमाग़ पैरों तले बर्फ़ की सफ़ेद चादर बिछा देता है। रेत की बात छिड़े तो रेगिस्तान के थपेड़े महसूस होने लगते हैं। बातें, दिमाग़ और शब्द मिलकर सेकेंट के सौवें हिस्से से भी कम समय में आपको भारत से अमेरिका पहुंचा सकते हैं। बातों के ज़रिये उत्तरी ध्रुव से दक्षिणी ध्रुव जाने में सेकेंड का कौन सा हिस्सा लगेगा, ये मापा भी नहीं जा सकता। हैरी पॉटर भी अपनी जादुई छड़ी हिलाकर इतनी जल्दी हमें यहां से वहां नहीं भेज सकता। बातों-बातों में हम जाने क्या-क्या बातें कर जाते हैं। बहुत ऊंची-ऊंची बातें करनेवालों को बुद्धिजीवी फ़र्ज़ी ठहराते हैं। निंदा रस की बातों का मज़ा ही दूसरा होता है। बातें नहीं करते तो घुन्ने कहलाते हैं, बातें बहुत करते हैं तो कहते हैं कि बात बनाते हैं। कुछ लोग बहुत अच्छा बोलते हैं लेकिन दिल के बहुत कड़वे होते हैं। कुछ बहुत कड़वी बातें बोलते हैं मगर दिल के बहुत अच्छे होते हैं। बातों से हम कितना बंधे हैं। अगर कोई अपना साथ छोड़ चला जाता है तो सबसे ज्यादा बातों की ही तो कमी खलती है, न मुलाक़ात होगी, न बात होगी। बातें ही तो हैं जिस पर ज़िंदगी चलती है।
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