यहां गूंजते हैं स्त्रियों की मुक्ति के स्वर, बे-परदा, बे-शरम,जो बनाती है अपनी राह, कंकड़-पत्थर जोड़ जोड़,जो टूटती है तो फिर खुद को समेटती है, जो दिन में भी सपने देखती हैं और रातों को भी बेधड़क सड़कों पर निकल घूमना चाहती हैं, अपना अधिकार मांगती हैं। जो पुकारती है, सब लड़कियों को, कि दोस्तों जियो अपनी तरह, जियो ज़िंदगी की तरह
24 February 2011
सुबह-सुबह ही
आज सुबह से मुलाकात तय थी
कॉल की थी, बात तय थी
सोचा, सुबह को बुलाने के लिए
मिस्ड कॉल एक दे दूं
पर कॉलबैक की उम्मीद न थी
तो सुबह के आने से पहले
कॉल ही एक कर दी
च्च्च्च
पर मुलाकात से ठीक पहले सुबह
हमारे विशालकाय न्यूज़ फ्लोर से
बाहर रह गई
खिड़कियां भी नहीं जहां झांकने के लिए
नारंगी सूरज फिर मिलेंगे
हां आज मिलने की तमन्ना थी
--
बारिश की कुछ बूंदें
और एक प्याली चाय
कुछ बूंदों की टिप-टिप सर पर
कुछ प्याली में
भीगी सड़कें, ज्यादा सुंदर
टिपटिप के बीच, भागते कदम
हाथ में चाय का प्लास्टिक प्याला लिए
उसकी गर्माहट को बचाना भी था
न्यूज़रूम से निकल
सड़क किनारे चायशाला तक
आना-जाना
कुछ चुस्कियों के लिए
बहाने बनाना
दिनभर की भागदौड़ के लिए
चंद चुस्कियां
थोड़ा निकोटिन
बंद नसों के खुलने के लिए
थोड़ी चीनी
मिठास बनाए रखने के लिए
इस सुबह तो
बारिश की बूंदों में पगी चाय
दिल की नर्माहट के लिए
बोनस जैसे
सुबह
एक अच्छी शुरुआत
तुम्हारे लिए
15 February 2011
वेलेंटाइन डे पर अपने ब्लॉग पर कोई प्रेम कविता डालने की योजना बनाई थी, नेट पर ढूंढ़ा, कुछ नहीं मिला, खुद से कुछ लिख नहीं पायी, कोई और चीज, कोई और बात, कोई और ख्याल दिमाग़ में साफ नहीं था। वैलेंटाइन डे पर घर के कामों की व्यस्तता में इस बारे में सोचने की फुर्सत भी नहीं मिली। वैलेनटाइन डे याद भी नहीं रहा हालांकि उससे एक दिन पहले ख़बरों को बुनने के लिए नेट पर कुछ प्रेम कविताएं ढूंढ़ रही थी। सबको मिलाजुला कर एक जगह रखा, कुछ अपनी तरफ से भी जोड़ती जा रही थी,साथ रखीं प्रेम पंक्तियां मुझे अच्छी लगी। दो दिन बाद वही ब्लॉग पर देने का ख्याल आया....तो इसलिए
प्रेम तो कुछ ऐसा है कि पार कर जाते हैं आप
सारी नदियां, सारे पहाड़, महासागर
संगीत के वाद्य यंत्र खुद ही बजने लगते हैं
उजाला और साफ दिखने लगता है
अंधेरा जैसे जगमगाता है
समूची दुनिया ही जैसे कलर करेक्शन के साथ
और ख़ूबसूरत हो जाती है
आंसू भी जब छलकते हैं
तो लगता है कि आंखों से लहू टपकते हैं
प्रिय के हाथ में हाथ
तभी ख़ामोशी भी करती है बात
(पीले गुलाब इसलिए क्योंकि मैंने सपने में अपने पतिदेव को पीला गुलाब दिया, जिसके बारे में बताया तो जनाब ने मज़ाक बना दिया, कहा अगले साल सफेद गुलाब देना, उसके अगले साल सूखी डंडी, लाल गुलाब नहीं थे इसलिए, वैसे वो पीले गुलाब सपने में गजब के पीले थे, सुंदर-मखमली-पारदर्शी, उसके लिए शब्द नहीं ऐसे)
प्रेम तो कुछ ऐसा है कि पार कर जाते हैं आप
सारी नदियां, सारे पहाड़, महासागर
संगीत के वाद्य यंत्र खुद ही बजने लगते हैं
उजाला और साफ दिखने लगता है
अंधेरा जैसे जगमगाता है
समूची दुनिया ही जैसे कलर करेक्शन के साथ
और ख़ूबसूरत हो जाती है
आंसू भी जब छलकते हैं
तो लगता है कि आंखों से लहू टपकते हैं
प्रिय के हाथ में हाथ
तभी ख़ामोशी भी करती है बात
(पीले गुलाब इसलिए क्योंकि मैंने सपने में अपने पतिदेव को पीला गुलाब दिया, जिसके बारे में बताया तो जनाब ने मज़ाक बना दिया, कहा अगले साल सफेद गुलाब देना, उसके अगले साल सूखी डंडी, लाल गुलाब नहीं थे इसलिए, वैसे वो पीले गुलाब सपने में गजब के पीले थे, सुंदर-मखमली-पारदर्शी, उसके लिए शब्द नहीं ऐसे)
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