24 February 2011

सुबह-सुबह ही








आज सुबह से मुलाकात तय थी
कॉल की थी, बात तय थी
सोचा, सुबह को बुलाने के लिए
मिस्ड कॉल एक दे दूं
पर कॉलबैक की उम्मीद न थी
तो सुबह के आने से पहले
कॉल ही एक कर दी
च्च्च्च
पर मुलाकात से ठीक पहले सुबह
हमारे विशालकाय न्यूज़ फ्लोर से
बाहर रह गई
खिड़कियां भी नहीं जहां झांकने के लिए

नारंगी सूरज फिर मिलेंगे
हां आज मिलने की तमन्ना थी

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बारिश की कुछ बूंदें
और एक प्याली चाय
कुछ बूंदों की टिप-टिप सर पर
कुछ प्याली में
भीगी सड़कें, ज्यादा सुंदर
टिपटिप के बीच, भागते कदम
हाथ में चाय का प्लास्टिक प्याला लिए
उसकी गर्माहट को बचाना भी था
न्यूज़रूम से निकल
सड़क किनारे चायशाला तक
आना-जाना
कुछ चुस्कियों के लिए
बहाने बनाना
दिनभर की भागदौड़ के लिए
चंद चुस्कियां
थोड़ा निकोटिन
बंद नसों के खुलने के लिए
थोड़ी चीनी
मिठास बनाए रखने के लिए
इस सुबह तो
बारिश की बूंदों में पगी चाय
दिल की नर्माहट के लिए
बोनस जैसे
सुबह
एक अच्छी शुरुआत
तुम्हारे लिए

3 comments:

संजय भास्‍कर said...

बहुत सुंदर,

संजय भास्‍कर said...

सच कहती हुई....हर एक पंक्ति ...।

vijay kumar sappatti said...

बहुत ही अच्छी नज़्म ... शब्दों की कशिश .. वाह . बधाई

आभार
विजय
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कृपया मेरी नयी कविता " फूल, चाय और बारिश " को पढकर अपनी बहुमूल्य राय दिजियेंगा . लिंक है : http://poemsofvijay.blogspot.com/2011/07/blog-post_22.html