22 April 2012











कल सेटरडे नहीं है
नहीं कल फ्राइडे है
तुम्हारा पीआर काफी स्ट्रॉन्ग है
क्या तुम इस बारे में कुछ कर सकती हो
(दफ्तर की बातों में, सेटरडे मेरा वीकली ऑफ है)
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(ऑफिस में कैंटीन के रास्ते पर जाते हुए)

अरे ये लंगूर रोज यहां घुमाते हैं
 बंदर तो इतने हैं नहीं, करते क्या हैं
कहीं इसे भी नौकरी पर तो नहीं रख लिया है
इसका इम्पलॉई कोड क्या है
कहीं इसे ही हमारा.... न बना दें।
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हम भारत की जनता एक बड़े ड्रामे को बड़ी ख़ामोशी के साथ देख रहे हैं
ड्रामा राजनीति के मंच पर चल रहा है
डॉयलॉग बड़े सधे-सधे हैं
बीच-बीच में हम परेशान होते हैं
टेंशन में आ जाते हैं
फिर ज़ोर-ज़ोर से हंसते हैं
तालियां नहीं बजाते
सोचते हैं जूता बजाएं
पेट्रोल-डीज़ल-रसोई गैस बिजली-होमलोन....
इस स्क्रिप्ट में बहुत रोमांचक कहानियां हैं
ड्रामे का नाम है यूपीए गवरमेंट पार्ट 2

19 March 2012

नेन्सी,जेरी की याद में...





पामुक का कुत्तों पर लिखा एक अंश पढ़ रही थी। मेरे मन में भी एक कुत्ते की छवि उभर आई, मुझे घूर रहा था, शायद पूंछ भी हिला रहा था। कुत्ते जब बिना भौंके या गुर्राए, सामान्य हालत में घूरते हैं तो ऐसा लगता है कि उनसे ज्यादा दया का पात्र कोई और नहीं होगा। पामुक को पढ़ मैं भी खुद को लिखने से नहीं रोक पायी, उम्मीद है किसी को बुरा नहीं लगेगा।

ये जो कुत्ता मुझे ख्याल आया, वो रोज सुबह सवेरे चाय के ठेले पर मिलता है। वैसे तो कुत्तों की पूरी चौकड़ी है वहां। पर ये वाला लोगों के बीच में कुछ ज्यादा ही जाता है। चाय के साथ लोग बिस्किट-रस-मठ्ठी भी खाते हैं, उसकी निगाहें बिस्किट मठ्ठी पर जमी होती हैं। चाय के ठेले पर कुछ लोग कई बार बड़ी दिलदारी का परिचय देते हुए कुत्ते को मठ्ठी खिलवा देते हैं, कई बार मजबूरी में, कई बार हिकारत में। ये कुत्ता कई बार तो पीछे ही पड़ जाता था। चाय पीना मुश्किल हो जाता और मुझे तो कुत्तों से डर भी बहुत लगता है।


एक और कुत्ते का ख्याल आता है। सुबह ऑफिस के लिए घर से निकलते वक़्त मिलता है वो। मेरे फ्लोर से दो फ्लोर नीचे के घर में रहता है। सुबह उसके मालिक साहब उसे टहलाने ले जात हैं। जैसे ही लिफ्ट उस फ्लोर पर खुलती है मेरी घिघ्गी बंध जाती है। बल्कि घिघ्गी बनना किसे कहते हैं ये भी उस कुत्ते की वजह से मुझे पता चला। अब हमारी अंडरस्टैंडिग हो गई है कि कुत्ता टहलाने निकले अंकल जी मुझे देख लिफ्ट में प्रवेश ही नहीं करते, अलबत्ता कुत्ता जरूर अंदर की ओर भागता है। मैं भी उन्हें ऑफर करती हूं कि आप पहले नीचे चले जाइये, मैं बाद में आ जाऊंगी, पर वो मना कर देते हैं और मैं लिफ्ट के साथ नीचे चली जाती हूं।

दो कुत्ते तो मेरे बहुत प्रिय थे। जेरी और नेन्सी। इस बहाने उन्हें याद करने का मौका मिला। दोनों पॉमेलियन थे। पहले जेरी घर में आया था। मैं तब शायद 11वीं में पढ़ती थी। महीनेभर का भी नहीं था तब वो। मैं डरती थी। उसे छूने का जी चाहता था तो ग्लब्ज पहनकर छूती थी। एक बार मेरा पैर उसके खाने के टिफिन पर पड़ गया था, बहुत ज़ोर से भौंका वो, कुत्तों के प्रति मेरा डर और गहरा गया। अगर वो मेरी तरफ चुप हो घूरता तो मैं डर जाती। वो गुस्सैल कुत्ता था। लेकिन बाद में वो मुझे बहुत प्यार करने लगा।
कभी उसे भूख लगती तो वो मेरे पास आता, आगे वाले दोनों पांवों को हाथ की तरह इस्तेमाल कर मुझे बुलाता, लाड दिखाता, मैं समझ जाती, इसे भूख लगी है।

जेरी बीमार चल रहा था। मैंने सपना देखा वो बहुत कमज़ोर-बेहद बीमार, मुझसे गंगाजल मांग रहा था। मैं अचंभित थी। इस सपने के तीन रोज बाद उसकी मौत हुई थी। हम उसे लेकर डॉक्टर के पास कई बार भागे। उस रोज भी डॉक्टर के पास से लेकर आए थे। मेरा अनुमान है कि डॉक्टर को मालूम पड़ गया होगा कि अब ये नहीं बचेगा, इसीलिए कोई ऐसा इंजेक्शन उसने लगाया कि घर आने के बाद जेरी चुप सा हो गया, आंखें पत्थर की तरह जमती चली गईं, ज़िंदगी कैसे मौत में समा जाती है।

उसके सफेद फर्र से बाल घर में चारो तरफ बिखरे रहते थे। उसकी मौत के बाद अपने बचकानेपन में, मैंने उसके बालों का एक गुच्छा सा वेलवेट के कपड़े में संभालकर रख दिया। मुझे सपने आने लगे। सपने में जेरी गुर्राता, गुस्सा होता, मैं डर जाती और सोचती आखिर वो मुझ पर नाराज़ क्यों हो रहा है, जबकि वो तो मुझे बहुत चाहने लगा था। फिर ख्याल आया। मैं वेलवेल कपड़े में रखी जेरी की याद को लेकर छत पर गई। उसके सफेद बालों का गुच्छा हवा में उड़ा दिया। उसके बाद मैंने जेरी का कभी कोई डरावना सपना नहीं देखा।

जेरी की मौत के कुछ वक़्त बाद नेन्सी घर आई थी। जेरी बहुत खूबसूरत था। नेन्सी थोड़ी कम। जेरी गुस्सेवाला था, नेन्सी चापलूस टाइप्स। जब वो छोटी सी थी, जाड़ों में हम उसे रजाई के अंदर लेकर बैठ जाते। उसे बिस्तर पर लाने पर मम्मी बहुत डांटती, पर हम उसके मासूम चेहरे को देखते, वो हमारे पास आना चाहती थी, फिर हमसे रहा न जाता।

नेन्सी को बहुत लाड मिला, जैसे घर में छोटे बच्चे को मिलता है। हमारे साथ ही रहती-मंडराती-कई साल इसी तरह गुजरे। मैं लखनऊ से दिल्ली चली आई थी। कुछ वक़्त बाद मेरी छोटी बहन भी मेरे पास चली आई। नेन्सी अकेली रह गई। तब लखनऊ जाने का ख्याल आता तो सबसे पहले नेन्सी की याद आती, वो बुरी तरह हमसे लिपट पड़ती, गुस्सा होती, चाटती, बिलकुल नहीं छोड़ती। उससे मिलने के बाद ही हम किसी और से मिल सकते थे। इतनी गर्मजोशी से हमारा स्वागत कोई नहीं करता, जितना नेन्सी।

पर अब लिखते हुए सोचती हूं कि हमारे आने के बाद वो अकेली रह गई होगी, तकलीफ होती होगी उसे, वो हमारे साथ-साथ ही तो रहती थी।। उसकी मौत की ख़बर फोन पर मिली थी। मैं चुप रह गई, मेरी बहन बहुत रोई।

एक और कुत्ते के बारे में जरूर लिखूंगी। सुबह तड़के ऑफिस के लिए घर से निकली थी। वो चुपके से बना आवाज़ किए आया और मेरा पैर उसने अपने दांतों में पकड़ा ही था कि मैं ज़ोर से चीखी, मेरी चीख निकलते ही सड़क पर कुछ लोग दहाड़ पड़े, कुत्ता भाग निकला, मैने जींस पहनी थी, तो उसके दांत मेरे पैरों तक पहुंच नहीं बना पाए।

और भी कई कुत्तों से पाला पड़ा। दो-चार पैरवाले। पर याद करने के लिए इतने किस्से बहुत हैं।

(चित्र गूगल से साभार)

31 January 2012

लेकिन आग जलनी चाहिए










हो गई है पीर पर्वत-सी पिघलनी चाहिए,
इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए
सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं,
मेरी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए
मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही,
हो कहीं भी आग, लेकिन आग जलनी चाहिए

(मौजूदा हालात में खुद को उम्मीद देने के लिए, थोड़ी आग देने के लिए....दुष्यंत कुमार ये कविता बातों-बातों में आ ध्यान आ गई, चित्र गूगल से साभार)