24 November 2014

ईरानी महिलाओं के संघर्ष और हम





ईरान की ओर हम दोस्ताना निगाहों से देखते हैं। टीवी-इंटरनेट युग से पहले भारत और ईरान के बच्चे एक सी कहानियों को पढ़कर बड़े हुए हों जैसे। इसलिए ईरान से कुछ लगाव सा है। ईरान की लड़कियों की ज़िंदगी के बारे में खबरों-सिनेमा-सोशल साइट्स के ज़रिये जो जानकारियां मिलती हैं वो बेहद परेशान करनेवाली होती हैं। भारत की लड़कियां भी संघर्ष के दौर से निकलकर कुछ आज़ाद हो रही हैं, कुछ आज़ादी हासिल करने की जद्दोजहद कर रही हैं। ईरान की लड़कियों के साथ भी ऐसा ही कुछ है। उनकी मुश्किलें हमसे कहीं ज्यादा हैं। ईरान की आज़ाद ख्याल लड़कियों को पढ़कर वहां के हालात के बारे में पता चलता है। कि ईरानी लड़कियां बालों में खुली हवा का एहसास करने के लिए कितना तड़पती हैं। साइकिल चलाना वहां मजहब के खिलाफ़ है। वो पुरुषों के बास्केटबॉल मैच नहीं देख सकतीं। कितनी सामान्य सी बातें हैं ये। जिसके लिए वहां की लड़कियों को कितने जुल्म सहने पड़ते हैं, जैसे उनकी आत्मा को जंजीरों में जकड़ दिया गया हो। उनके बालों को जबरन बांध दिया गया हो, उनकी खुली आंखें इधर-उधर भटकती हैं, उनके कानों में पड़ते मधुर संगीत को तो नहीं रोक सकते वो।




गोवा में आयोजित 45वें इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल ऑफ इंडिया में ईरानी फिल्म द डे आई बिकम ए वुमनप्रदर्शित की गई। ईरानी समाज का सच खोलती है ये फिल्म। ईारनी मूल की फिल्मकार मार्जिए मेशकिनी ने समकालीन ईरानी समाज में औरतों की हैसियत पर ये फिल्म बनायी है। फिल्म की कहानी शुरू होती है 9 साल की एक बच्ची के जन्मदिन से। बच्ची की दादी ने फ़रमान सुनाया है कि 9 साल की होने पर उसे लड़कों के साथ खेलने की इजाज़त नहीं मिलेगी। दादी के मुताबिक उस समाज में नौ साल की होने पर लड़की औरत बन जाती है। इसलिए लड़कों के साथ खेलना उनके समाज की मर्यादा के खिलाफ होगा। छोटी बच्ची दादी को तर्क देती है कि उसके 9 साल का होने में अभी एक घंटा बाकी है। बच्ची के इस तर्क के आगे दादी बड़ी मुश्किल से तैयार होती है। फिर लड़की उस अनमोल एक घंटे को कैसे बताती है फिल्म में दर्शाया गया है। इसी फिल्म में एक दूसरी कहानी शुरू होती है। जिसमें एक युवा लड़की कई लड़कियों के साथ साइकिल पर जा रही है। घोड़े पर सवार उसका मंगेतर पीछे से आता है और लड़की को साइकिल चलाने से मना करता है। साइकिल चलाना उनके मजहब के खिलाफ है। लेकिन युवा लड़की अपने दिल की सुनती है और साइकिल चलाती रहती है। फिर मंगेतर एक काजी के साथ आता है कि अगर लड़की साइकिल से नहीं उतरी तो वो तलाक दे देगा। लड़की साइकिल से नहीं उतरती, मंगेतर घोड़े पर से ही उसे तलाक दे देता है। फिर लड़की का पिता उसे साइकिल चलाने से मना करने के लिए आता है। लड़की फिर भी नहीं मानती। अंत में उसके दो भाई आते हैं और लड़की की साइकिल जबरन छीन लेते हैं। लड़की आखिर में हार तो जाती है लेकिन लड़ते हुए। इस फिल्म में बुजुर्ग औरत की भी कहानी है।छोटी बच्ची की कहानी जैसे ज़िंदगी से किसी अहम स्वाद का हमेशा के लिए छीन लिया जाना। युवा लड़की के परों को बुरी तरह कुचल देना। इन कहानियों को सुनकर जैसे हमारे जेहन का एक हिस्सा भी बुरी तरह छलनी होता है।


आज़ादी की हवा में सांस लेने के लिए तड़प रही हों जैसे हमारी ईरानी दोस्तें। माइ स्टेल्दी फ्रीडम यानी मेरी गुप्त आज़ादी। ये ईरानी लड़कियों का बनाया हुआ ख़ास फेसबुक पेज है। जिसमें वहां की लड़कियां बिना हिजाब पहने अपनी तस्वीरों को पोस्ट कर रही हैं। ईरानी कानून में महिलाओं के लिए सार्वजिनक स्थानों पर हिजाब पहनना अनिवार्य है। ऐसा न करने पर उन्हें गिरफ्तार तक किया गया है। मॉरल पुलिस की चेतावनियों से उन्हें गुजरना पड़ता है। इस फेसबुक पर लड़कियों ने कई तरह की तस्वीरें साझा की हैं। बिना हिजाब के समुद्र तट पर खड़ी अपार दृश्य को देखती हुई, घर की छत से खुली सड़क को देखती हुई ईरानी लड़कियां। तस्वीरों के साथ कुछ लड़कियों ने अपने मन की बातें भी बतायी हैं कि बिना हिजाब पहने हुए उन्हें अपने बालों में हवा कितनी प्यारी लगी। कुछ सेकेंड की आज़ादी भी उनके लिए कीतनी कीमती है। ये पढ़ते हुए आप अपने बालों में खुली हवा को महसूस कीजिए, इक ज़रा सा एहसास है हमारे लिए, लेकिन ईरानी लड़कियों के लिए बहुत मुश्किल सबब।
कुछ लड़कियों ने अपनी ज़िंदगी के किस्से साझा किए हैं। कैसे उनके परिवार में, उनके समाज में पुरुष उनकी ज़िंदगी को नियंत्रित करते हैं। उन्हें अपने फैसले खुद नहीं लेने देते, उनके फैसले कोई और लेता है। ब्रिटने की ईरानी मूल की पत्रकार मसीह अलीनेजाद ने हाल ही में ये पेज बनाया था। जिसे बहुत कम वक़्त में 2,48,000 लाइक मिले।



ग़ोन्चे ग़वामी की खबर पूरी दुनिया को लगी। 25 साल की ग़वामी को अभी ज़मानत पर रिहा किया गया है। 20 जून को उन्हें इसलिए गिरफ्तार किया गया क्योंकि वो कुछ महिलाओं के साथ पुरुषों के वॉलीबॉले मैच को देखने की कोशिश कर रही थीं। ग़वामी में जेल में ही भूख हड़ताल भी कर दी थी और जेल के बाहर हजारों लोग गवामी की रिहाई के लिए आंदोलन कर रहे थे। हस्ताक्षर अभियान चलाया जा रहा था। ईरान में महिलाओं को पुरुषों के वॉलीबॉल और फुटबॉल मैच देखने की आज़ादी नहीं है। गोन्चे को एक साल की सज़ा सुनाई गई है और दो साल तक उनके विदेश जाने पर पाबंदी लगा दी गई है।


पूरी दुनिया हैरान रह गई थी जब पिछले अक्टूबर के आखिरी हफ्ते में 26 साल की रेहाना जब्बारी को फांसी दे दी गई। उन्हें माफी देने के लिए अंतर्राष्ट्री मुहिम चलायी गई थी लेकिन ईरानी सरकार ने सब अनसुना कर दिया। रेहाना ने उस व्यक्ति का कत्ल किया था जिसने उसके साथ बलात्कार की कोशिश की। 2007 में गिरफ़्तार की गई थी रेहाना जब्बारी। अक्टूबर 2014 में उन्हें हत्या के जुर्म में फांसी दे दी गई। रेहाना का मां को लिखा आखिरी पत्र दुनियाभर के अखबारों की सुर्खियां बना। रेहाना ने पत्र में घटना का जिक्र करते हुए लिखा कि इस दुनिया ने मुझे सिर्फ 19 साल जीने का मौका दिया। उस मनहूस रात मुझे मर जाना चाहिए था। मेरी मौत के कुछ दिन बाद पुलिस तुम्हें आकर मेरी लाश पहचानने के लिए कहती। मेरी लाश देखने के बाद तुम्हें ये पता चलता कि मेरा रेप भी हो चुका है।
मेरी अच्छी मां, प्यारी शोले, मेरी ज़िंदगी से भी प्यारी, मैं ज़मीन के अंदर सड़ना नहीं चाहती. मैन नहीं चाहती कि मेरी आंखें, मेरा नौजवान दिल मिट्टी में मिल जाए, मैं चाहती हूं कि फांसी पर लटकाए जाने के तुरंत बाद मेरे दिल, किडनी, आंखें, हड्डियां और बाकी जिस भी अंग का प्रत्यारोपण हो सके उन्हें मेरे लिए शरीर से निकाल लिया जाए और किसी जरूरतमंद को तोहफे के रूप में दे दिया जाए। 

हिजाब ईरानी लड़कियों की ज़िंदगी का इतना अहम हिस्सा बना दिया गया है कि कई तो इसके बिना बाहर जाने की कल्पना भी नहीं कर पातीं। कुछ संघर्ष की राह चुनती हैं। हाल ही में इंचियॉन में संपन्न हुए एशियाई खेलों में मुस्लिम देशों की बहुत सारी महिला खिलाड़ी हिजाब पहने नज़र आईं। इसके बिना उन्हें खेलने की अनुमति नहीं है।


जुलाई 2014 में ईरान की एक तस्वीर ने सोशल मीडिया पर खूब धूम मचायी इस तस्वीर में एक लड़की ने हाथ में बर्तन धोनेवाले लिक्विड की बॉटल को ट्रॉफी की तरह उठाया हुआ है। ईरान की फुटबॉल टीम के जैसे कपड़े पहने हैं। सर पर हिजाब है, आंखों में गुस्सा। ये तस्वीर स्ट्रीट आर्ट की तरह तेहरान में एक सड़क पर दीवार पर उकेरी गई थी। जिस पर लिखा हुआ था ब्लैक हैंड 2014. ब्लैक हैंड यानी एक गुमनाम कलाकार। तस्वीर उजागर होने के चंद घंटों के अंदर ही इस पर लाल रंग पोत दिया गया। ये माना गया कि कलाकार ने ही बाद में अपनी ग्रैफिटी पर लालन रंग पोत दिया और ऐसा करके कुछ संदेश देने की कोशिश की गई। माना गया कि इस तस्वीर के जरिये ये बताने की कोशिश की गई कि ईरान में महिलाओं के साथ कैसा सलूक हो रहा है।


ईरान की लड़कियों की दुआओं में हमारी प्रार्थनाएं भी शामिल हैं। उनकी सुबह हमसे कुछ पीछे है। हमारी सुबह का सूरज भी अभी पूरा गोल नारंगी नहीं है। घर की छोटी-छोटी बातों से लेकर जीवन के कठिन डगर पर हमारे संघर्ष का रास्ता अभी लंबा है। ईरान-भारत के साथ ही पूरी दुनिया में औरतों के अधिकार की ये लड़ाई जारी है। ताकि धरती पर जन्म लेनेवाली नन्ही बच्चियां हमसे ये सवाल न पूछें कि सिर्फ लड़कों को ये हक़ क्यों हासिल हैं, मम्मा मैं लड़कों की तरह क्यों नहीं खेल सकती, मम्मा मैं देर से घर आऊंगी तुम चिंता मत करना और हमें सचमुच चिंता न हो, भरोसा हो हमारी बेटी जहां भी है सुरक्षित है। आकाश, सूरज, चांद सितारे, हवा, धरती, पेड़,पौधे, घास, फूल सब...सबके लिए समान हों। 

10 November 2014

प्रतिरोध का चुंबन


पानी के बहाव को जितने ज़ोर से रोकने की कोशिश करेंगे उतने ही बल के साथ पानी निकलेगा। किस ऑफ लवप्रतिरोध का प्रतीक है। अलग तरह से किया जा रहा प्रतिरोध। जो प्रेम की अभिव्यक्ति की आज़ादी मांग रहा है। प्रतिरोध के तरीके को लेकर कुछ लोग आतंकित हैं। ये तो अश्लीलता है। प्रतिरोध का तरीका कुछ और भी तो हो सकता है। लड़का-लड़की को साथ खड़े देखने से ऐतराज करनेवाले लोग किस ऑफ लव को देखकर इतने तक पर तैयार हो गए हैं कि हाथ में हाथ डालकर प्रदर्शन कर लेते। एक दूसरे को फूल देकर प्रदर्शन कर लेते। एक दूसरे को सार्वजनिक तौर पर चुंबन लेकर प्रतिरोध कैसा। प्रेम का प्रतीक चुंबन प्रतिरोध का प्रतीक बन गया है।
वो प्यार जिसे चाहते सब हैं लेकिन छिपकर। ज्यादातर बुजुर्ग इसे कैसा जमाना आ गया है समझते हैं, जो अपने वक़्त में बिना मां की इजाजत लिए अपनी पत्नियों के पास नहीं जा सकते थे। पत्नियों का चेहरे तक नहीं देख सकते थे। सड़क पर पत्नियां उनसे ढाई कदम पीछे ही चलती थीं, वो अपनी पत्नियों के आगे-आगे। जमाना कुछ दशक फलांगकर आगे बढ़ा तो जोड़े रेस्त्रा में बैठने लग गए, साथ घूमने-फिरने लग गए। कुछ दशक फलांगकर ज़माना फिर बदला। एक दूसरे को देख लेने भर से प्यार हो जाने, और एक दूसरे को छू लेने भर से सिहर उठनेवाले लोग देख रहे हैं, नए लड़के-लड़कियां बेपरवाही से एक दूसरे के कंधे पर धौल जमाकर चल यार कह रहे हैं। सबकुछ नॉर्मल है। लड़कों के हाथ खींचकर लड़कियां सड़क पर ले जा रही हैं। हां इसी ज़माने में अब भी लड़कियों की जींस और मोबाइल पर फतवे जारी हो रहे हैं। इसी खींचतान में ज़माना बदल रहा है।


किस ऑफ लव आंदोलन की बुनियाद केरल के कोझिकोड में एक कॉफी शॉप में पड़ी। कॉफी शॉप की पार्किंग में लड़का-लड़की एक दूसरे को किस कर रहे थे। और कुछ लोगों ने नैतिकता का ठेका लेते हुए उन पर हमला कर दिया। केरल के बीजेपी और कांग्रेस के कार्यकर्ताओं को भी बैठे बिठाए मुद्दा मिल गया। सब नैतिकता के ठेकेदार बन गए। जबकि आम लोगों ने इस पर कोई एतराज नहीं किया। राज्य के युवाओं ने 2 नवंबर को प्रतिरोध स्वरूप किस डे मनाने का फैसला किया। किस ऑफ लव के नाम से एक फेसबुक पेज भी बना, जिससे इस आंदोलन की आंच तेज़ हुई।

गौर कीजिए कि केरल देश का सबसे शिक्षित राज्य है। यहां के नौजवानों पर इतना भरोसा तो बनता ही है। मोरल पुलिसिंग के नाम पर उत्पात मचानेवालों के खिलाफ यहां के नौजवानों ने प्रेम के इज़हार का आंदोलन बनाया। अब सवाल है कि किस करना अश्लील हरकत कैसे हो सकता है, ये तो प्यार की निशानी है। प्यार के अधिकार के इस आंदोलन में इतनी आग थी कि दिल्ली-मुंबई-कोलकाता तक के छात्र-छात्राएं इसमें शामिल हुए। ये नफरत का जवाब प्यार से देने की कोशिश है। छात्र-छात्राएं एक दूसरे को चूमकर अपना विरोध दर्ज करा रहे थे। उन्हें इसमें कोई अश्लीलता नहीं लगती। सिर्फ लड़के-लड़कियों ने एक दूसरे को नहीं चूमा, बल्कि लड़कियों ने लड़कियों को और लड़कों ने लड़कों को भी चूमा। ये एक सहज भाव के चुंबन थे, बिना किसी लाग लपेट के चुंबन। आज के दौरे में युवा अपने तरीके से जीने और प्यार का इज़हार करने को आज़ाद हैं। 

मॉरल पुलिसिंग की घटनाएं इन दिनों तेजी से बढ़ी हैं इसलिए प्रतिरोध का ये नया तरीका भी सामने आया। इस तरीके से हैरान एक गुट संस्कृति की दुहाई लेकर सड़कों पर आया। उसने नारा दिया-प्यार करो पर अपनी संस्कृति के अनुसार। बहुत सारे लोग प्रतिरोध का चुंबन स्वीकार नहीं कर पा रहे। वो मॉरल पुलिसिंग का विरोध तो करते हैं लेकिन इस तरह के प्रतिरोध को उचित नहीं ठहराते। उन्हें लगता है कि प्रतिरोध का तरीका कुछ अलग हो सकता है। एक दूसरे को सार्वजनिक तौर पर चूमना, किस करना उनके लिए कुछ ज्यादा ही हो गया वाली बात है। कुछ इस प्रतिरोध के समर्थन में भी हैं। वो प्रेम की अभिव्यक्ति की आज़ादी की मांग करते हैं। दिल्ली के प्रतिष्ठित जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में भी किस ऑफ लवका आयोजन हुआ। छात्र-छात्राओं ने वेदों तक का हवाला दिया। प्रेम तो हमारी संस्कृति का हिस्सा है। खजुराहों की दीवारें इसकी प्रत्यक्ष गवाह हैं।

कोलकाता-हैदराबाद-मुंबई में भी छात्र अपने किस ऑफ लव की तख्तियां उठाए सड़कों पर आए। अपने साथियों को चूमा। मॉरल पुलिसिंग का विरोध किया। ये मॉरल पुलिसंग करनेवाले उस वक़्त कहां चले जाते हैं जब किसी लड़की के साथ बीच सड़क पर छेड़छाड़ होती है। याद कीजिए असम के गुवाहाटी की घटना। पूरी भीड़ लड़की के साथ अश्लील हरकतें कर रही है, छेड़खानी कर रही है, वही लोग मॉरल पुलिसिंग करने लगते हैं। कभी किसी रेस्त्रां में घुसकर बैठे जोड़े पर हमला बोल देते हैं। लड़के-लड़कियों के बाल काटने लगते हैं, पार्क में लड़कियों के बाल पकड़कर खींचते हैं। ये उस संस्कृति की पहरेदारी कर रहे हैं जिसमें बलात्कार की घटनाएं आम घटना गिनी जा रही होती है। हर किसी घंटे कहीं कोई लड़की शोषण का शिकार हो रही होती है। तीन-चार साल की मासूम बच्चियों तक को दरिंदे नहीं छोड़ रहे। स्कूलों में बलात्कार हो रहे हैं, बसों में बलात्कार हो रहे हैं, भीड़भाड़ वाली सड़क पर कोई लड़की कार में खींच ली जाती है, खून से सनी किसी वीराने में फेंक दी जाती है। मॉरल पुलिसिंग करनेवाले लोगों की मॉरेलिटी तब कहां चली जाती है। जो वयस्क लोगों को किस करने से रोकने के लिए सड़कों पर मोर्चा खोलते हैं। वो बलात्कारियों के खिलाफ मोर्चा क्यों नहीं खोलते। ये हमारा दोहरा चरित्र दिखाता है। कहते कुछ हैं, करते कुछ हैं।

सार्वजनिक तौर पर अश्लीलता को लेकर कानून हैं। अगर कहीं कोई अश्लीलता हो रही हो तो उससे कानून के दायरे में निपटा जाना चाहिए। संविधान के अनुच्छेद 294(ए) के तहत अगर कोई सार्वजनिक स्थल पर अश्लील क्रिया करते देखा जाता है तो उसे तीन महीने तक की सज़ा हो सकती है, या जुर्माना, या दोनों ही। नौजवान कानून की सीमाएं जानते हैं। नैतिकता की ठेकेदारी के विरोध में प्रतिरोध का चुंबन लिया जा रहा है। अब इसे रोकने के लिए आंसू गैस चलाएं, लाठियां फटकारें। देश का युवा अपने लिए प्रेम के इज़हार की आज़ादी का दावा कर रहा है। इसके लिए कई युवाओं ने गिरफ्तारी भी दी, उन पर केस भी दर्ज किए गए।



(चित्र गूगल से साभार)