11 January 2015

साक्षी महाराज के उपदेश का गणित


साक्षी महाराज के उपदेश का गणित
(चित्र गूगल से साभार)

साक्षी महाराज चाहते हैं कि हिंदू महिलाएं कम से कम चार बच्चे पैदा करें।  भारत की पिछली सरकारों की सारी मुहिम पर पानी फेरते हुए उनका ये व्यक्तव्य आया। तब कि इस देश के रेलवे -बस स्टेशन, मंदिरों, पर्यटन स्थलों पर भूखे-बेछत-बेआसरा बच्चे बिलबिलाते हुए घूमते हैं। अनाथालयों में बच्चों की संख्या में कोई कमी नहीं है। यहां तक कि बाल सुधार गृह  बच्चों से भरे हुए हैं।
इस सब के साथ एक बच्चे की अच्छी परवरिश कर पाना, उसे देश का एक अच्छा नागरिक बनाने के लिए तैयार करना कितना मुश्किल काम है, इस बात से साक्षी महाराज अनभिज्ञ तो नहीं हो सकते। वो सिर्फ पूजा-पाठ करनेवाले महाराज नहीं बल्कि एक सांसद भी हैं।  
सम्मानजनक तरीके से एक हिंदू महिला को एक बच्चे को जन्म देना होता है तो पैसों  के कितने ब्रेकर्स आते हैं, साक्षी महाराज को ये जानना जरूरी है।नौ महीने में कम से कम नौ बार तो डॉक्टर के पास जाना ही होता है, इससे ज्यादा भी जाना पड़ सकता है। खांसी जुकाम के ढंग के डॉक्टर की फीस भी 400-500 रुपये है। साधारण स्त्री रोग विशेषज्ञ की फीस 500 रुपये रख लीजिए। तो नौ महीने में  4500 हजार रुपये तो सिर्फ डॉक्टर की फीस हो गई। शुरुआती दौर में डॉक्टर्स कुछ अल्ट्रासाउंड भी कराती ही हैं, दो अल्ट्रासाउंड को दो हजार रुपये जोड़ देते हैं तो 6500 रुपये हुए। जबकि मेरा खुद का अनुभव कई अल्ट्रासाउंड से गुजर चुका है। नौ महीने जो दवाएं जच्चा को खानी पड़ती हैं और इसके साथ  ज्यादा पौष्टिक आहार की जरूरत होती है तो दोनों को मिलाकर दस हजार रुपये रख दें तो अब तक का कुल खर्च हुआ 16500 रुपये। एक साधारण प्राइवेट अस्पताल या नर्सिंग होम में नॉर्मल डिलिवरी में भी 20 से 30 हज़ार रुपये लग जाते हैं। यदि ऑपरेशन हुआ तो कम से कम पचास हजार रुपये। डॉक्टर आजकल आपरेशन के मौके छोड़ते नहीं  तो डिलिवरी और उसके बाद दवाइयों का खर्च मिलाकर पचास हजार रुपये जोड़ लें तो अब हम पहुंच गए 66,500 रुपये पर।
बच्चे का जन्म खुशियां लेकर आता है और जिम्मेदारियां भी, इसके साथ बढ़ा खर्च भी। बच्चे के जन्म के बाद उसके टीकाकरण की प्रक्रिया शुरू हो जाती है। सरकारी अस्पतालों में मेरा तो विश्वास है नहीं। प्राइवेट डॉक्टर्स जो इंजेक्शन लगवाते हैं हजार, दो हजार, तीन हजार से कम के नहीं होते। अलग-अलग इंजेक्शन के अलग-अलग खर्च होते हैं और सबके सुपर डोज भी। एक डोज से काम चलता नहीं। पांच साल की उम्र तक बच्चों को कई इंजेक्शन लग जाते हैं। मौटे और न्यूनतम तौर पर हम दस हजार रुपये सिर्फ इंजेक्शन के जोड़ लेते हैं। तो अब कुल खर्चा 76,500 रुपये पहुंच गया है। इसके अलावा बच्चों के सेरेलेक, डाइपर और बच्चे को दूध पिलाने की अवस्था में मां का पौष्टिक आहार महंगाई के इस दौर में सस्ता नहीं है। एक महीने में सेरेलेक के दो डब्बे यानी हजार रुपये। ऑर्डनरी डाइपर का हिसाब जोड़ें तो पांच सौ रुपये हर महीना कम से कम। तो इस 1500 रुपये का एक साल के हिसाब से खर्च जोड़िये  17,000 रुपये। तो अब कुल रकम 93,500 रुपये। ये बच्चे के पहले जन्मदिन तक होने वाला मोटा खर्च है। छोटे बच्चे बीमार भी पड़ते हैं, उनके कपड़े, खेल-खिलौने और जरूरत की दूसरी चीजें इस लिस्ट में नहीं जोड़ी गई हैं।
साल दर साल इस खर्च में इजाफा ही होता है। डॉक्टर की फीस, दवाइयों की कीमत,दूध की कीमत, अस्पतालों का खर्च बढ़ता ही है। तो चार बच्चों का पहले एक साल का कुल खर्च हुआ 3,74,000 रुपये।
मैंने अपनी बेटी का एडमिशन एक पब्लिक स्कूल में कराया है। मैं चाहती हूं मेरी बेटी को अच्छी शिक्षा मिले। उत्तर प्रदेश के सरकारी स्कूलों की हालत आप जाकर देख सकते हैं। किसी भी प्राइवेट स्कूल में इन दिनों डोनेशन 50 हजार से उपर ही है। मुझे कोई 70 हजार रुपये देने पड़े। चलिये आप पचास हजार रुपये के हिसाब से ही जोड़ लें तो चार बच्चों के एक ढंग के स्कूल में एडमिशन का चार्ज दो लाख रुपये से तीन लाख रुपये के बीच आएगा। दो लाख रुपये ही जोड़ते हैं तो अब तक बजट हो चुका है  5,74 ,000 रुपये। बारहवीं तक की पढ़ायी यानी 14 साल। हर साल फीस और स्कूल बस का खर्च जोड़ते हैं। साधारण स्कूलों की फीस दो हजार रुपये से शुरू होती है। अच्छे स्कूलों की आठ-दस हजार रुपये मासिक से उपर जाती है। उसके उपर के स्कूल को छोड़ देते हैं। मैं इस समय त्रैमासिक तकरीबन 20 हजार रुपये बतौर फीस दे रही हूं। तो चार किस्ते हुईं 80 हजार रुपये और एनुअल फी को जोड़ें तो एक लाख रुपये सालाना से ज्यादा। चार बच्चे यानी चार लाख सालाना। 14 साल तक पढ़ायी यानी 4 गुणा 14 लाख रुपये हुए 56 लाख रुपये। इस 56 लाख में पुराने बजट को जोड़ दें तो ये हुए  61,74,500 रुपये।
सिर्फ पढ़ायी का खर्च जोड़ा गया है। बच्चों की स्कूल किताबें, खान-पान, दवाइयां, खेल-खिलौने, कपड़े और कई सारी दूसरी चीजों का औसतन खर्च क्या निकालेंगे। बहुत कम रकम रखते हुए भी 20 हजार रुपये सालाना राशि मान लेते हैं। एक बच्चे का 18 साल की उम्र तक सालाना 20 हजार रुपये का मतलब हुआ कुल  3,60,000 रुपये। हालांकि एक्चुअल रकम इससे कहीं ज्यादा होगी। अब चार बच्चों का इस हिसाब से खर्च हुआ 14,40,000 रुपये। उपर की कुल रकम में इसे जोड़िये।
हम पहुंच गए हैं 76,14,500 रुपये पर। मैं एक नौकरीपेशा महिला हूं। मेरी एक बेटी है। नौकरी और परिवार दोनों की जिम्मेदारी साथ उठाना बहुत मुश्किल होता है। हमारी सोसाइटी में शादीशुदा महिला की नौकरी ही शर्तों में बंध जाती है, उनकी तरक्की के मौके कम होते जाते हैं। चार बच्चों के साथ तो मैं नौकरी नहीं कर पाउंगी। जाहिर है मेरी नौकरी छूट जाएगी। तो मेरी नौकरी छूटने की भरपायी भी जरूरी है। क्योंकि उसके बिना तो बच्चे पाले ही नहीं जा सकेंगे, न उनका खर्च उठाया जा सकेगा। तो साधारण तौर पर पांच लाख रुपये सालाना मानते हुए मुझे 18 साल तक पांच लाख रुपये सालाना का भुगतान करें और इसमें हर  साल होने वाले 20 फीसद इंक्रीमेंट को भी जोड़ें। मेरा गणित बहुत अच्छा है नहीं इसलिए मैं पहले पांच लाख रुपये सालाना के हिसाब से 18 साल का हिसाब बताती हूं। ये होगा कोई 90लाख रुपये। चलिए 18 साल की कमाई मिनिमम से भी कम इंक्रीमेंट के साथ एक करोड़ रुपये जोड़ देते हैं।
तो अब कुल रकम हुई 1 करोड़ 76 लाख, 14 हजार 5 सौ रुपये।  अब मेरा पहला बच्चा या तो कॉलेज जाएगा या इंजीनियरिंग, मेडिकल, एमबीए जैसी कोई पढ़ाई करेगा। ग्रेजुएशन और उच्च शिक्षा का खर्च जोड़ दें वो भी न्यूनतम तो 5 से 10 लाख रुपये का खर्च आएगा। तो अब 1 करोड़ 76 लाख, 14 हजार 5 सौ रुपये को मोटे तौर पर दो करोड़ रुपये मान लें। चार बच्चे तो पैदा हो जाएंगे लेकिन ये दो करोड़ रुपये कहां से आएंगे। इन पैसों में आप घर का खर्च, मकान खरीदने का खर्च, बाइक-कार का खर्च, बिजली के बिलों, डॉक्टरों के बिलों जैसे तमाम खर्चे जोड़ दें तो ये रकम जाने कहां चली जाएगी। अब आधार कार्ड और सीधे अकाउंट में पैसा डालने की व्यवस्था शुरु हो गई है। देश की आधी आबादी के लिहाज से साक्षी महाराज सब माओं के अकाउंट में ये दो-दो करोड़ रुपये डलवा दें।

1 comment:

Vaanbhatt said...

बेहतरीन प्रस्तुति...जय हिन्द...