09 March 2015

India's Daughter, शुक्रिया leslee udwin












शुरू-शुरू में तो मुझे भी बेहद अजीब लगा कि एक रेपिस्ट बताएगा लड़कियों को कैसा रहना चाहिए, किस समय घर से  बाहर निकलनेावली लड़कियां गंदी लड़कियां हैं, रेपिस्ट समझाएगा कि महज 20 फीसद लड़कियां ही अच्छी लड़कियां हैं।   
लेकिन शुक्रिया लेजली उडविन का। India’s Daughter के नाम से उन्होंने एक बेहतरीन डॉक्युमेंट्री बनायी। वो जो हम न बना सके। डॉक्युमेंट्री देखने के बाद मेरा विचार बदला।
इस पर प्रतिबंध लगाया जाना मुझे ठीक नहीं लगता। तब भी जब मुझे ये लग रहा था कि एक रेपिस्ट के विचारों को लोग जानें। दरअसल मेरा डर ये था कि लोग, अधिकांशत: युवा, नकारात्मक बातों को जल्दी स्वीकार करते हैं। अपराध की दुनिया, अपराधी की सोच जाने-अनजाने हमारे अवचेतन पर नकारात्मक प्रभाव छोड़ते हैं। जैसे भद्दे गाने, एक्शन फिल्में जल्दी पॉप्युलर होती हैं, अच्छी चीजों को जगह बनाने में वक़्त लगता है।

डॉक्युमेंट्री देखते हुए एक बार भी  बीच में रुकने की इच्छा नहीं हुई। निर्भया के मां-बाप की बातें, अपराधी मुकेश की बातें एक दूसरे को काउंटर कर रही थीं। जब मुकेश कहता है कि लड़कियों को रात में अकेले  बाहर नहीं निकलना चाहिए तब निर्भया की मां बताती है कि उसकी बेटी रात 8 बजे से सुबह 4 बजे तक इंटरनेशनल कॉल सेंटर में काम करती थी, ताकि अपनी पढ़ाई का खर्च उठा सके और फिर सुबह कॉलेज जाती थी। मुकेश कहता है कि लड़कियों का काम है घर की साफ-सफाई, खाना बनाना...। निर्भया की मां बताती है कि उसकी बेटी ने पढ़ने के लिए कितनी मेहनत की, पिता से कहा कि जो पैसे उन्होंने उसके दहेज के लिए रखे हैं उसे पढ़ाई पर खर्च कर दीजिए। आंखों में गर्व और आंसू लिए मां  बताती है कि कैसे एक छोटे से शहर में रहनेवाली लड़की ने अपनी अंग्रेजी इतनी अच्छी कर ली कि उसे अमेरिकन इंटरनेशनल कॉल सेंटर में नौकरी मिल गई।

पूरी डॉक्युमेंट्री में अपराधियों के चेहरे पर अपने किये पर पछतावे के कोई लक्षण नहीं दिखे। मुकेश बताता है कि आगे कोई रेप करेगा तो लड़की को जिंदा नहीं छोड़ेगा ताकि वो उसे पहचान न सके। कानून का ये खौफ़ हैे अपराधियों पर। तो यहां शर्म हमारी कानून व्यवस्था को लागू करनेवालों को आनी चाहिए। मुकेश तकरीबन वही बातें कर रहा था जो सचमुच हमारे ईर्दगिर्द रहनेवाले ज्यादातर लोग करते हैं। उसकी बातें शरीफ लोगों को बातों जैसी ही थीं।  हम एक रेपिस्ट की कुंठित मानसिकता ही नहीं समझ रहे थे, उसे  सुनते हुए अपने चारों तरफ के तमाम लोग  ख्याल आ रहे थे जो यही बातें बोलते हैं। यही बात गीतकार-सांसद जावेद अख्तर ने कही-”डॉक्युमेंट्री को सामने आने दीजिए, एक रेपिस्ट वही तो बोल रहा है जो आम शरीफ लोग बोलते हैं, जो बातें वो संसद के गलियारे में अक्सर ही सुनते हैं।”
लेकिन सबसे ज्यादा घिन तो अपराधियों का केस लड़नेवाले दोनों वकीलों की बातों को सुनकर आ रही थी।  जो एक लड़की को कभी नाजुक फूल बना रहे थे, तो कभी उस पर पेट्रोल डालकर जलाने की बात कह रहे थे। उनकी सोच तो अपराधियों से भी ज्यादा  खौफनाक और लीचड़ थी। उनके मुंह से लिजलिजी बातें निकल रही थीं, जो एक रेपिस्ट की बातों से भी ज्यादा खतरनाक थीं। छी...।

लेजली की डॉक्युमेंट्री देखते हुए एक और बात समझ आ रही थी। लेजली उन झुग्गियों में गईं जहां मुकेश और उसके साथी रहते थे। उनके परिवारों के हालात, उन झुग्गियों के हालात देख यही लग रहा था कि ये जगहें तो अपराधी बनाती हैं। जहां जीने के लिए इतने बदतर हालात हों,वहां गुदड़ी का लाल तो कोई एक आध बनेगा ज्यादातर तो  नकारात्मक ऊर्जा से ही प्रभावित होंगे। रात को जगमगाती ऊंची-ऊंची इमारतों के साये में बसी, हर तरह के अंधेरे में डूबी झुग्गियां कैसे इंसान बनाएंगी। जहां एक मां कहती है कि मुझे तो पता ही नहीं था कि मेरा बेेटा जिंदा भी है, वो तो पुलिस जब उसे ढूंढ़ते हुए आई तो पता लगा कि मेरा बेटा जिंदा है,मैं तो उसे मरा हुआ मान चुकी थी।

डॉक्युमेंट्री में निर्भया आंदोलन के दृश्य दोबारा देख एक बार फिर रगों में जमा ख़ून खौलने लगा कि क्या हम सचमुच भूल चुके थे उस आंदोलन को। हमारी मांग सिर्फ निर्भया फंड तो नहीं थी। लगा कि दोषियों को फांसी देने में इतना वक़्त निकल जाता है कि फांसी की सज़ा का जो असर जनमानस पर होना चाहिए था वो अब नहीं होगा। फिर ऐसी फांसी का मतलब भी नहीं रह जाता है। और हां मैं भी ऐसे अपराधियों पर फांसी के पक्ष में हूं जो ऐसे जघन्य अपराध करते हैं। लेकिन दीमापुर की घटना के पक्ष में बिलकुल नहीं जहां रेपिस्ट को जेल से निकालकर भीड़ जानवर बन गई।
आखिर में शुक्रिया Leslee Udwin, you have done a great job. और ज्योति अपने नाम की तरह ही तुमने दुनिया को नई ज्योति दी।

No comments: